The Good, the Bad and the Ugly
बी. टेक का फर्स्ट ईयर जस्ट ख़त्म ही हुआ था कि मेरे दिमाग में एक खुराफाती आईडिया आया। मैंने अपने दो लफंगे दोस्त ( हर्ष(Left) , गौरव(Centre) ) को बोला भाई ट्रिप पे चलते है । पहली बार घर से निकल रहे थे तो ढेर सारे प्लान कि बरसात हो रही थी । हमारे में सबसे बुद्धिजीवी महाशय श्रीमान हर्ष सैनी जी ने ताबड़तोड़ ज्ञान फेकना चालू किया । भाई ने जितने प्लेस सुने थे सारे गिनवा दिए । अंत मै होगा वही जो गौरव महाशय चाहेंगे , भाई बोला मैंने तो आज तक दिल्ली भी नहीं देखि है, बस इतना कहना ही था दूसरे महासय start हो गए , अबे क्या बात कर रहा है ,साले दिल्ली भी कोई घूमने कि जगह है वह तो मै हर महीने जाता हूँ मेरे तो फूफा, मौसा , जीजा etc etc वही पे रहते है , सालो लद्दाख चलते है । खैर जेब में कोड़ी ना होना और बड़ी बड़ी बाते तो भाई की पुरानी आदत थी , अंत मै पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत जनमत दिल्ली के लिए राजी हुआ । अब सामने थी सबसे विकट समस्या , जी है जो की अम्बानी , अडानी की समस्या है ( धन का आभाव) । टोटल जमा पूंजी सिर्फ 500 रूपये ही हो पाए । उसके बाद ज्ञान देने की बरी महान अर्थशास्त्री श्री अजय कुमार (मतलब मै ) की थी । सॉरी , सॉरी भाइयो का इंट्रो देने के चक्कर में अपना इंट्रो देना ही भूल गया ।
नाम : अजय कुमार
योग्यता : महान दार्शनिक , मनोविज्ञानी इत्यादि इत्यादि
बस मैंने बोला हर्ष के घर काम है , हर्ष ने बोला गौरव , गौरव ने बोला मेरे घर दो दिन के लिए निकल लिए। कश्मीरी बस अड्डे पर हम रात को 9 बजे पहुंचे , अब ना खाने का ठिकाना ना ही ये पता कहा जाये , हर्ष सर बोले कि यार नॉएडा चलते है , वहाँ का तो दिन ही रात के 10 बजे निकलता है। हमने भी सोचा भाई को अच्छी नॉलेज है हर महीने आता है भाई तो । अब लगभग 11 बजे तक नॉएडा पहुंचे , देखा तो क्या वो चमचमाती लाइट, वो अनगिनत बन्दिया (वो भी शॉर्ट्स में ), वो बड़े बड़े मॉल सभी के सभी जैसा की हर्ष भईया ने बताया था , सब गायब था!!
था तो बस घनघोर अँधेरा, वो मच्छरों की झनझाहट और हा,अब तो बारिश भी चालू हो गयी थी, साथ ही मेट्रो, बस भी नॉएडा का दिन स्टार्ट होते ही बंद हो चुकी थी । आस पास कोई धर्मशाला, गुरुद्वारा (भाई ३०० रूपये में यही ध्यान में आता है) भी नहीं था, हमने हर्ष की ओर बड़ी आशा भरी नज़रो से देखा की अब तो भाई ही है, भाई इन आशा भरी निगाहो से भली भाती परिचित था , हमारे बोलने से पहले ही भाई ने क्लियर कर दिया कि घर तो किसी रिस्तेदार के नहीं जाऊंगा । बस फिर क्या था पूरी रात दुकान के शटर के सामने ही निकली औऱ है हमारा हाल पूछने बीच बीच में पुलिस वाले, कुत्ते , आवारा सांड जरूर आते थे शायद उन्हें अच्छा न लगा औऱ हाँ , मच्छरों को तो मानो आज चिकन मिल गया था ।
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