व्यंग्य

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आज सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक पर रोक लगा दी, चारो ओर नारी शाश्क्तिकरण के नारे गूंज रहे है।  चलो देर आये दुरुस्त आये। समाजवादी, समतावादी, फेमिनिस्ट इस फैसले का  श्रेय अपने आप को देने मे बिलकुल नहीं झिझक रहे है, जैसे की सुप्रीम कोर्ट मै उनकी डायरेक्ट पहुंच हो। खैर इन सब का खुश होना तो समझ में आता है, पर रूढ़िवादी हिन्दू संघठनों का ख़ुशी प्रकट करना मेरी समझ से बाहर है। 
क्या ये ख़ुशी नारी की दशा सुधारने के कारण है ?  या  रूढ़िवादी मुस्लिमो के मुँह पर तमाचा लगने के कारण ?
अगर पहला कारण है तो, भाई दूसरो को कहने से पहले अपने गिरेबान मे झांक लो , क्योकि आज भी हिन्दू समाज में देवदासी के नाम पर शारीरिक शोषण, अच्छी भली औरत को चुड़ैल बताकर सरेआम हत्या, भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रतारण, घूँघट, माहवारी के कारण मंदिर में प्रतिबंध जैसी अनेक तुच्छ परंतु भयावह प्रथाये अभी भी खुले आम प्रचलित है। तो कम तो तुम भी नहीं हो। 
और हाँ अगर दूसरा वाला कारण है तो तुम्हारी फीलिंग समझ सकता हूँ।  

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